निःसंतानता – निःसंतानता के नाम से आप सभी अच्छे से वाक़िफ़ होंगे क्योंकि यह एक ऐसा दोष है, जो किसी महिला के लिए सबसे श्रापित दोषों की श्रेणी में गिना जाता है। निःसंतानता उन महिलाओं के लिए एक ऐसा शब्द है जो उसे घर-परिवार व समाज में मान-सम्मान में हेय की दृष्टि से देखा जाता है। निःसंतानता प्रजनन प्रलाणी में होने वाला एक दोष है, जो मनुष्यों में एक वर्ष तक प्रयास करते रहने के बाद अगर गर्भ धारण नही होता है तो उसे निःसंतानता कहते है। भारत की कुल आबादी में 10 से 15 प्रतिशत महिलाओं में यह दोष देखने को मिलता है। निःसंतानता का 35 प्रतिशत कारण महिलाए और 35 प्रतिशत कारण पुरुष होते है और 20 प्रतिशत कारणों में महिला तथा पुरुष दोनों शामिल हो सकते है। अब तक 10 प्रतिशत कारणों का पता नही लगाया जा सका है। इस रोग को बोल चाल की भाषा में निःसंतानता कहा जाता है। वर्तमान समय में निःसंतानता एक बहुत बड़ी गंभीर समस्या है जो दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। परंतु आज भी आयुर्वेद में ऐसे बहुत से उपचार है जो इस समस्या के निदान के लिए पूरी तरह से कारगर साबित होते है।
आयुर्वेदिक उपचार – हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों वर्षों की तपस्या के बाद अनेक सिद्दियों को प्राप्त करके जीवन को तंदरुस्त और सुखी जीवन जीने के बारे में जागरुक किया है। परंतु विदेशियों ने हमारे ऋषि-मुनियों की इस कड़ी मेहनत के बाद प्राप्त की गई आयुर्वेद चिकित्सा को ढोंग का नाम देकर हमारे समाज से इसको कम करने को पूरा प्रयास किया है और आज भी कर रहें है। आयुर्वेद विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्राचीन चिकित्सा है, जो आज से हजारों साल पहले पूर्णतः कारगर थी और आज भी पूरी तरह से सफल साबित हो रही है। आयुर्वेदिक उपचार का मुख्य उद्देश्य यह है कि यह चिकित्सा पूर्ण रुप से प्राचीन भारत की चिकित्सा है, जो बिना की साइड इफेक्ट के रोग को ठीक करने में पूर्ण रुप से सक्षम होती है। दूसरा इसका उद्देश्य यह भी है कि लोगों को कहते सुना होगा कि इसके लाभ कुछ देर से मिलने शुरु होते है। यह बात सत्य है परंतु यह पूरी तरह से आपकी बीमारी के ऊपर निर्भर करता है, कि आपकी बीमारी क्या है और यह कितनी पुरानी हो चुकी है। आयुर्वेद चिकित्सा के लाभ छोटी-मोटी बीमारियों में तो पहले दिन से ही मिलने लग जाते है।
निःसंतानता या निःसंतान का इलाज आयुर्वेद में पूर्णतः संभव है, क्योंकि जहाँ ऐलापैथी का इलाज भी काम नही कर पाता है वहां पर आयुर्वेद शत प्रतिशत कामयाबी दिलाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा महिलाओं के निःसंतानता के उपचार के लिए आज के समय में एक वरदान साबित होती दिख रही है, क्योंकि जहां हर तरह की चिकित्सा किसी काम नही आती है, वहां पर आयुर्वेद आज भी अपनी पूरी गुणवत्ता के साथ इसके सफल इलाज के लिए पूरी तरह से सक्षम है।
जानिए क्या है पंचकर्म और इसके लाभ – आयुर्वेद के अनुसार शरीर से विशाक्त पदार्थों को बहार निकालने की प्रक्रिया को पंचकर्म सिद्धांत के अंतर्गत रखा गया है। इसे हम शरीर का शुद्धिकरण भी कह सकते है, क्योंकि जब हम शरीर से विषैले पदार्थों का त्याग करते है तो हमारा शरीर पूरी तरह से शुद्ध हो जाता है। आयुर्वेद की पंच कर्म पद्धति में पांच क्रियाएं होती है। इनके नाम इस प्रकार से है – वमन, विरेचन, बस्ति, नस्य, रक्तमोक्षण।
1. वमन – पंचकर्म की पहली प्रक्रिया होती है वमन अर्थात उल्टी के द्वारा शरीर के जहरीले विशाक्त पदार्थों को शरीर से बहार करके शरीर को शुद्ध बनाना।
2. विरेचन – विरेचन पंचकर्म की दूसरी पद्धति है जिसके द्वारा पूरी तरह से शरीर से मल का त्याग किया जाता है। इस प्रकिया में शरीर की आंतों में जमें विशाक्त पदार्थों को निकाला जाता है और जड़ी बुटियों का सेवन कराया जाता है जिससे विशैल पदार्थ शरीर से जल्द से जल्द मल के द्वारा बहार आ जायें।
3. वस्ति – पंचकर्म के इस चरण में हम रोगी को आयुर्वेद की तरल औषाधियों का सेवन कराते है। इन तरह औषधियों में दुध, तेल या फिर घी को पिलाया जाता है। इस प्रक्रिया का उपयोग जटिल तथा पुरानी बिमारियों को ठीक करने में किया जाता है।
4. नस्य – इस प्रक्रिया के अंतर्गत शरीर के अंदर नाक के द्वारा औषधियों का प्रवेश शरीर में किया जाता है, जिससे आपके सिर में मौजूद अपशिष्ट पदार्थ बहार निकलते है।
5. रक्तमोक्षण – रक्तमोक्षण जैसा कि नाम से ही विदित होता है, कि रक्त को शुद्धिकरण अर्थात इस अंतिम चरण में हम पंचकर्म के द्वारा रक्त का शुद्धि करण करते है। जिससे शरीर के कुछेक भाग जिसमें दिक्कत हो रही है या फिर पूरे शरीर के रक्त का शुद्धिकरण करते है, क्योंकि सबसे ज्यादा बीमारियां खून की खराबी के कारण ही होती है।
पंचकर्म के महत्व पूर्ण लाभ –
• पंचकर्म क्रिया के द्वारा शरीर के दोषों को बाहर निकाल दिया जाता है, इससे व्याधि ठीक होकर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। पंचकर्म स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
• पंचकर्म के द्वारा आपके शरीर का पूरी तरह से शुद्धिकरण हो जाता है।
• शरीर के सभी दुषित और विशाक्त पदार्थ बहार निकल जाने से इन्द्रिया, मन, बुद्धि एवं रुप रंग अच्छा हो जाता है तथा बल एवं वीर्य की रुद्धि होने से पौरुष शक्ति बढ़ती है।
• पंचकर्म पद्धति से दीर्घायु की प्राप्ति होती है और साथ ही पंचकर्म आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है, जिससे शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है, जिससे बार-बार होने वाली बिमारिया टाली जा सकती है।
• रोज-रोज की ऐसीडिटी होना, खाँसी-जुकाम होना, पेट ठीक से साफ न होना, मुहासे, जोड़ो के दर्द और कई सारी बिमारियों में पंचकर्म बहुत ही लाभकारी होता है।
• पंच कर्म सिद्धांत के द्वारा बढ़ती उम्र को कम किया जा सकता है तथा साथ ही बुढ़ापा देर से आता है।